This song is dedicated to all who ever been part of Symbiosis institute of business Management,Pune
"the passion to live it up and the spirit to wear it on our sleeve"
Video of Spirit of SIBM by Jazba
आंगन में पंछी आए ख्वाब सजाने को
आँखों में सपने लाये ,कुछ कर दिखाने को
कुछ सपने पीछे छूटे पलकों पे आंसू बनके
कुछ अपने पीछे छूटे पलकों पे आंसू बनके
कुछ ख्वाब झांकते हैं आँखों में मोती बनके
कुछ वादे अपनों के हैं ,कुछ वादे अपने से
कल दुनिया महकेगी फूल जो आज खिलने को हैं ....2
खिलने दो रंगों को फूलों को अपने संग
महकेगी दुनिया सारी ,बहकेगी अपने संग
ख्वाबों के परवाजो से आसमान झुकाने को है........2
आंगन में पंछी आए ख्वाब सजाने को
आँखों में सपने लाये ,कुछ कर दिखाने को
क़दमों की आहट अपनी दुनिया हिला देगी
यारों की यारी अपनी हर मुश्किल भुला देगी
दिव्य प्रकाश दुबे
Divya Prakash Dubey
SIBM Batch of 2007-09
dpd111@gmail.com© Copyright Rests With Creator. Divya Prakash Dubey
This song is dedicated to all the people who are pursuing MBA or planning or completed MBA .
I 'm sure you 'll be able to relate your days with this song ,presented by students of SIBM ,Pune .
हम सभी कभी न कभी डायरी लिखते हैं या कोशिश करते हैं कुछ यादों को ,कुछ पन्नों में समेटने की ये कविता उसी कोशिश का एक हिस्सा भर है !!
चुनाव के मौसम मै
This poem was written in last election of UP when few IIT pass outs took initiative and left thier lucrative careers and joined politics .I also joined the motion enjoyed the time i spent with those New genration Real "Rang De Basantii" Heros .This poem is dedicated to Omedra Bhai (From IIT Kanpur) and every member of "Bharat Punarnirman dal"(http://www.bharatpunarnirman.org/)
Jai Hind Jai Bharat
आओ हम तुम साथ चले और नय़ा सवेरा ले आये
आन्धियरी उम्मीद के जग मे सत्य पताका फहराये
भषटाचार गरीबी ने है सारे सपने तोङ दिए ...
ये सारे सपने खिल जाये कुछ ऍसा भारत ले आये
आम आदमी डुब गया है दुनिआ भर के वादो मै..
आम आदमी "ख़ास" बने कुछ ऍसा वादा ले आये
आओ हम तुम साथ चले और नय़ा सवेरा ले आये
बडए(bade-bade) बदे है लोग यहा और बडई बडाई(badi-badi) सरकारे है
परिवर्तन की बाते है और वही पुराने नारे है
सब ग़ीत नया मिल के गाये कुछ ऐसा सावन ले आये..
आओ हम तुम साथ चले और नय़ा सवेरा ले आये
""ऍक योजना ग़्यारह बार"" समझ चुकी हे पीढैया....
""जुर्म यहा कम केह्ते है "",लेकिन रोज जली है बेटइया(betiyan)
"जात पात"" के नाम पे हमने कितनी खायी गोलिया
ये झठ वादे ढह जाये कुछ ऍसी आन्धी ले आये..
आओ हम तुम साथ चले और नय़ा सवेरा ले आये
Divya Prakash Dubey